Monday, February 24, 2014

I Hold On

Dearly calm, this thunder blossoms,
The satan cries for my meander soul.
Winds of loneliness, spatter my mind,
relentless! I crusade for my goals.

Blinking or sinking? Something inside is burning bright,
Perhaps, its my soul that battles with might.
But after this lingering long, long time,
Some one finally shouts inside-
" Forget it fool! You have lost this fight."

Its not the loss, I ponder upon,
But the tide, that phased me wrong.
I'll not fall, sovereign you power,
Wink you power, Soon It will be my Hour.

Festival of Fall

A fall from the ridge of hope,
Strains my mind to listen,
Echos of my own.
In this endless whirlpool of life,
Subtle mystics, rattle my mental dyke.
A small kernel of rays of light,
Seeking a way,
I evolve in isolation, again 2 fight!

चिढ

चिढ सी मच गयी है हर चीज़ से,
उतनी खूबसूरती से देख नहीं पता दुनिया को अब,
नये लोगों के पास जाने की कोशिश करता हून,
पर वो मुझे ना-कमियाब कर देते हैं हर बार,
अक्छा तो नहीं लगता पर कोई तरीका भी नहीं बचा.
ग़ाज़्ज़ब जगहा है दोस्ती भी नहीं मिलती,
वो भी खरीद कर मेखाने में पीनी पढ़ती है

धूल

धूल की तरहा है मेरे गुम,
पल्ला झाढ़ लेता हूँ इनसे,
हवा में उढ़ाकर इन्हे,
पर जाने क्यूं,
आकर टेहर जाते हैं मेरे कंधे पर फिर से.

इस बार तो मेने जोर से झटकाया,
मेखाने के दरवाज़ों से आती हुई हवा से,
इनको और दुर्र झुलाया,
पर अपनी फितरत से मजबूर हैं- वो भी और हम भी;
हम पर नहीं, तो इस बार,
उंन गुमो ने; मेरे साये को ठिकाना बनाया.

Monday, February 10, 2014

रो

चलो रो भी लिये आज
येह काम भी पूरा हुआ
बहुत मन था
समय नहीं निकल पा रहा था
अजीब है मगर
आँसूं तो सुख गये
वझा याद नहीं आई अभी तक
जो रेखा आंसू ने गिरते वक़्त
चेरे पर बनाई, वो दिलचस्प थी
क्या पता उन्हें बनतेय देखने को रोया था

Tuesday, February 4, 2014

रेनकोट


प्यार हमारा रेनकोट
बचा रहा दुनिया की बारिश से
बहुत प्यारा है मुझे येह रेनकोट
इस रेनकोट को समय पर टांग देते हैं   
देखते हैं समय रोक पता है ये?

शायद मेरा प्यार इतना भार नहीं
की समय की सुई पर टांग कर
कुछ समय के लिये उसे थाम ले
रोक दे उसे, कुछ पल के लिये ही सही
और जीना चाहता हूँ येह लम्हा
रेनकोट में सिमट कर
जीवन का रस, थोड़ी देर
बस थोड़ा सी देर और पीना चटा हूँ

Monday, February 3, 2014

फीता


कोरे कागज़ों की बात बहुत हो गयी,
ज़िंदगी पन्ना नहीं, और तुम्हारा प्यार कलम
और वैसे भी,
ज़िंदगी कोई 2-D पन्ने पर कहाँ सिमटी

मुझे तो ज़िंदगी जूते के फित्ते की तरहा लगी
बचपन में ही अछा था
मा पेहेना देती थी जूता
दिन भर घूमता, मस्ती करता 
घर आता, तो एक छोर पकड़ाती वो फीते का
धीरे से खीच कर खोल देती
और जूता उतर जाता
पूरे दिन जूते में जकड़े पैर को
हवा मेहेसूस करके , अजीब सा सुकून मिलता
रात को पापा, पता नहीं कब जूता सॉफ कर देते
सुबहा फिरसे चमकता, मेरे पैरों पर सजता

अब थोड़ा अजीब है
ना मा से जूता पेहेने को केह सकता
ना पापा को उसे चुप छाप साफ करने को
और येह गाँठ भी अजीब सी है - जूते की
पेहेले बहुत सीधी थी ज़िंदगी
मा के थोड़े से ज़ोर से सुलझ जाती थी
अब हज़ारों गांठे हैं
एक को सुलझाने की सोचो
दुनिया दूसरी पहेली पूच लेती है

मा का लढ , पापा की छाया और शायद तुमहारा प्यार
इस खुदी से लड़ते, उलझते हुए फित्ते को
कभी तो सुलझाएगी
इस जकड़े हुए मन को वो हवा
कभी तो,  कभी तो
फिरसे छूकर जायेगी