Imaginary Blues
Monday, February 10, 2014
रो
चलो रो भी लिये आज
येह काम भी पूरा हुआ
बहुत मन था
समय नहीं निकल पा रहा था
अजीब है मगर
आँसूं तो सुख गये
वझा याद नहीं आई अभी तक
जो रेखा आंसू ने गिरते वक़्त
चेरे पर बनाई, वो दिलचस्प थी
क्या पता उन्हें
बनतेय देखने को रोया था
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